विचारों के प्रवाह में जब शब्दों का मिलन हो जाता है तो भावनाओं का दरिया निकल पड़ता है फिर वो बिना रुके अपनी अंनत यात्रा पर निकल जाता है और अंत में सोच के समंदर में मिल जाता है और एक कविता जन्म होता है जो बताता है की सपने में भी कुछ सुकून के पल होते है
आँखें खुली तो तुम बहुत याद आए थे कल रात कुछ सुकून के पल मेरे घर आए थे
कुछ सुकून के पल
मेरे घर आए थे
जब वो मुझसे
मिलने आए थे
ये ख्वाब का
एक हिस्सा है
हम नींद में
बहुत घबराये थे
बात क्या हुई
कुछ याद नही
पर वो हमेशा की तरह
खूब मुस्कुराए थे
माथे पर लाल सी बिंदी
गालों पर घूमती लट
और हाथो में
एक गुलाब लाए थे
घर अब भी खुशबू से
महक रहा था
मन अंदर ही अंदर
चहक रहा था
दिल को टटोला तो
बहुत ज़ोर से धड़क रहा था
जाड़ों के दिनों में
पसीना टपक रहा था
थोड़ा अचरज हुआ
थोड़ा खुद को संभाला था
तुम फिर कब आओगी
ये मेरा सवाल पुराना था
मेरा ख्वाब
आगे बढ़ रहा था
में नींद में था और सूरज
आसमान चढ़ रहा था
आँखें खुली
तो तुम बहुत याद आए थे
कल रात कुछ सुकून के पल
मेरे घर आए थे
जब वो मुझसे
मिलने आए थे
~ संजय
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