मन को बस इधर उधर लगा रखा है इसे काम न दो तो तुम्हें बुला लाता है बेवजह तुमसे बात करता है कभी हसाता है तो कभी आंखें नम कर जाता है तुम्हारा गुलाम है ये मन वक्त बेवक्त तुम्हीं को बुला लाता है सच कहूं तो मन अब लगता नहीं बस लगाना पड़ता है जीवन की इस भाग दौड़ में बेवजह मुस्कुराना पड़ता है सच कहूं तो मेरा एक दायरा है उसी में सब कुछ निभाना पड़ता है तुम खुश हो तो सही यही सब मान कर रोज़ सो जाना पड़ता है हर सुबह नई इल्तज़ा मन में सजाना पड़ता है बचपन की मुहब्बत हो याद तुम को दिलाना पड़ता है