दिवाली तो बचपन में हुआ करती थी, दशहरे के बाद से ही ज़ोर शोर से तैयारी शरू हो जाती थी , सबसे पहले घरों में पुताई का कम होता था उसके बाद पूरे घर की साफ सफाई और फिर घर की सजावट का कम शरू होता था
तब जा के बच्चों के लिए कपडे और तरह तरह के गिफ्ट आते थे , मम्मी का काम था की गुजिया और शक्कर पारे बनना और तरह तरह के नमकीन बनाना |
इन दिनों बाज़ारों में रोनक बढ़ जाती थी , अमीर से लेकर गरीब तक अपने अपने प्रकार से खरीदारी करते थे
दिवाली के दिन सभी एक दूसरे के घर जाते सबको नमन करते और मिठाई खाते , देर रात तक पठाके फोड़ते और ढेर सरे दिए जलाते थे |.
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आप सभी को दिवाली पर सदर नमन है एक कविता आप सभी के लिए
नमन है सभी को , सभी को नमन है
जले है जो दीपक , तो कितना अमन है
रिश्तों की खुशबू से , महका चमन है
ये दीपो की बस्ती मै , रोशन चमन है
रिश्तों का बंधन है , दिलों का है नाता
चलो आज फिर से , मै उनको बुलाता
रिश्तों के फूलों से , मैं घर को सजाता
प्यारा सा उत्सव है , मैं उत्सव मनाता
घर में है रोनक , रोनक जहाँ भी
खुशियों का मोसम है , यहाँ भी वहाँ भी
वो गुजिया वो बर्फी , वो दीपो की थाली
वो बच्चों की मस्ती , ये सुन्दर दिवाली
Sanjay Khare